हिंदी व्याकरण _ विराम चिह्न

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हिंदी व्याकरण _ विराम चिह्न

नीचे दिए गए वाक्यों पर ध्यान दीजिए :
(1) घोड़े को रोको, मत जाने दो। 
(2) घोड़े को रोको मत, जाने दो।
  इन दोनों वाक्यों में अलग-अलग स्थान पर विराम चिह्न लगाने से इनका भाव एक जैसा नहीं रहा।

विराम का अर्थ है रुकना या विश्राम लेना। हम बातचीत करते समय अपनी बात पर बल देने के लिए या समझाने के लिए थोड़ी देर रुकते हैं। रुकने की इस प्रक्रिया को विराम कहते हैं। लिखते समय इस प्रक्रिया के लिए कुछ निश्चित चिह्नों का प्रयोग किया जाता हैजिन्हें विराम चिह्न कहा जाता है। विराम चिह्नों के अनेक प्रकार होते हैं। 


(1)
पूर्ण विराम ( ।
)  :

 जहाँ वाक्य पूर्ण होता है, वहाँ पूर्ण विराम का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
    (1) मँझली भाभी मुट्ठी भर बुंदियाँ सूप में फेंककर चली गई।
    (2) याद आया बाबू जी आ गए होंगे।

(2) अल्प विराम ( , ) : 

पढ़ते अथवा लिखते समय जिस स्थान पर बहुत थोड़ी देर रुकना हो, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है।
 जैसे
-
   (1) ठहरो, मैं माँ से जाकर कहती हूँ, इतनी बड़ी बात।
  (2) ऐसी कारीगरी, ऐसी बारीको ऐसा काम पहली बार देख रहा था।

(3) अर्ध विराम ( ; ) : 

जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक देर रुकना हो, वहाँ अर्ध विराम का प्रयोग किया जाता है।
जैसे -
    (1) हम आपस में कितना भी लड़ें टकराएँ; बाहरी शत्रु के लिए एक ही हैं।
  (2) सभा-सोसायटियों में जाते हैं मगर चाहते हैं कि लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो।

(4) प्रश्नसूचक चिह्न  ( ? )  :

यह प्रश्न का बोध कराता है और इसका प्रयोग वाक्य के अंत में किया जाता है।
जैसे-
    (1) क्या सामाजिक आंदोलनों का भी आप पर कुछ प्रभाव पड़ा?
    (2) तो दूध न देने की सजा उसे लाठियों से दी गई ?

(5) योजक चिह्न ( - ) :

इस चिह्न का प्रयोग दो शब्दों को जोड़ने के लिए किया जाता है। यह दर्शाता है कि इसके दोनों ओर के शब्द परस्पर मिले हुए हैं।
जैसे-
  (1) दूर-दूर तक पानी ही पानी, तेज हवा और रस्सियों से हवा में लटके हम।
   (2)
लक्ष्मी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई।

(6) विस्मयसूचक चिह्न ( ! ) :  

हर्ष, शोक, घृणा, विस्मय, भय आदि भावों को व्यक्त करने के लिए जो शब्द आते हैं, उनके बाद इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
(1) वाह! आपने तो कमाल कर दिया।
(2)
ऐसा रोमांचक दृश्य पहली बार देखा। सचमुच अद्भुत! आनंद आ गया।

 (7) इकहरा उद्धरण चिह्न ('   ')  : 
किसी व्यक्ति के नाम, उपनाम या किसी पुस्तक का नाम लिखते समय इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- 
(1) 'टाँग का टूटना' यानी सार्वजनिक अस्पताल में कुछ दिन रहना।
(
2) 'प्रिय प्रवास' खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है।

 (8) दोहरा उद्धरण चिह्न ("  ") : 

जब किसी के कथन को बिना किसी परिवर्तन के ज्यों का त्यों लिखना हो, तब वहाँ इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। 
जैसे-
(1) क्रिकेट खिलाड़ी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, "एक दिन तुम देश का नाम रोशन करोगे।"
(2) सिरचन ने मुस्कराकर कहा, "यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है बबुनी।"

 (9) विवरण चिह्न ( :- ) : 

जब किसी वाक्यांश के बारे में कुछ विस्तार से कहना हो या किसी पद की व्याख्या करनी हो तो इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
विशेषण के निम्नलिखित भेद होते हैं। :- गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक और सार्वनामिक।

(10) कोष्ठक चिह्न ( ( ) ) : 

किसी पद का अर्थ प्रकट करने के लिए अथवा नाटकों में पात्र के भाव व्यक्त करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे -
(1) गोपाल प्रसाद (उमा से) तो तुमने पेंटिंग वेंटिंग भी सीखी है?
(2)
रामस्वरूप (चौंककर) बिजनेस? (समझकर) ओह, अच्छा, अच्छा।

(11) लाघव चिह्न0 ) : 

जो शब्द बहुत प्रसिद्ध हो या उसके बार बार लिखने की आवश्यकता पड़े, तो उसका पहला अक्षर लिखकर आगे लाघव चिह्न लगा देते हैं।
 
जैसे -

(1) पं० ( पंडित के स्थान पर )
(2) डॉo ( डॉक्टर के स्थान पर )


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